Home / वीडियो / आखिर कब तक अरबों की सिकटिया अजय बराज बहुद्देशीय योजना का रूप लेगी पर्यटन,बिजली उत्पादन ,पेयजल जैसी अन्य महत्वाकांक्षी योजनाओ के विकसित होने की अपार संभावनाएं हैं

आखिर कब तक अरबों की सिकटिया अजय बराज बहुद्देशीय योजना का रूप लेगी पर्यटन,बिजली उत्पादन ,पेयजल जैसी अन्य महत्वाकांक्षी योजनाओ के विकसित होने की अपार संभावनाएं हैं

रिपोर्ट:- झारखंड राज्य के संथाल परगना के देवघर जिला अंतर्गत सारठ अंचल अवस्थित सिकटीया मौजा में बना अजय बराज योजना में अबतक अरबों रुपए सरकार खर्च कर चुकी है लेकिन अभी तक अपने मूल उद्देश्यों से कोसों दूर भटक रही है। आज से लगभग 51 साल पूर्व इस योजना की आधारशिला 1975 में संयुक्त बिहार के समय तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा ने रखा था उस समय इस योजना का प्राक्कलन महज 10 करोड़ था। 2007 तक होते होते इस योजना में आवश्यकतानुसार लगभग 351करोड़ 84 लाख खर्च हो चुका है । इस बृहत जलाशय योजना से संथाल परगना के देवघर ,दुमका और जामताड़ा जिले के लगभग 40510 हेक्टेयर भूमि को सिंचित कर हजारों किसानों के जीवन को खुश हाल बनाना था। इस महत्त्वकांक्षी योजना को साकार बनाने के लिए यहां के लगभग 7000 किसानों ने अपनी जमीन बराज,जलाशय नहर निर्माण के लिए दी है। इस योजना से जलाशय का पानी 117 किलोमीटर नहर से होकर 40 हजार हैक्टेयर जमीन को सिंचित करना था । लेकिन नहर से होकर नाला कुंडहित तक नहर में अभी तक पानी नहीं पहुंच पाया है। यहां के किसानों का भरपूर सहयोग के बाद भी आजतक यह योजना उनके सपनों को साकार नहीं कर सकी है। यदि यह योजना उद्देश्यों के अनुरूप जमीन पर उतर पाती तो यह उनके लिए वरदान साबित होता।
पर्यटन ,विद्युत उत्पादन और पेयजल आपूर्ति जैसी बहु वैकल्पिक योजना विकसित करने की है अपार संभावनाएं:- सिंचाई के साथ साथ इस योजना से पर्यटन ,पेयजल आपूर्ति और विद्युत उत्पादन भी विकसित किया जा सकता है । जलाशय का बृहत आकर और इनके आसपास पड़े खाली जमीन का सदुपयोग कर सरकार इसे पर्यटन स्थल का रुप दे सकती है। जलाशय में जहां बोटिंग, फिशिंग जैसी सुविधाएं आसानी से बहाल हो सकता है वहीं दूसरी तरफ यहां के खाली जमीन को पार्क और पक्षी अभ्यारण्य का रुप देकर पर्यटकों को लुभा सकता है। पर्यटकों के ठहरने के लिए यहां पूर्व से ही करोड़ों की लागत से विशाल अतिथि शाला का निर्माण हो चुका है। इसे यदि पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाता है तो संथाल परगना ही नहीं बल्कि पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल से भी हर दिन बड़ी संख्या में पर्यटक इसका लुत्फ उठा सकेंगे। इस स्थल तक सुगम यातायात व्यवस्था इसे पर्यटन स्थल बनाने में और मददगार साबित हो सकता है। बाबा बैद्यनाथ धाम से इसकी सड़क मार्ग से दूरी लगभग 46 किलोमीटर है जबकि पटना कोलकाता रेल मार्ग अवस्थित करमाटाडं से काफी नजदीक है।
यदि इसे पर्यटन स्थल का रुप दिया जा सकता है तो कई माध्यम से यहां के लोगों को रोजगार भी उपलब्ध होगा। वहीं राज्य को अच्छी राजस्व भी मिल सकती है। पिछले सालों स्वयं राज्य के मुखिया हेमंत सोरेन जी मेगा लिफ्ट परियोजना का जब शिलान्यास किए थे उस समय भी वह योजना को काफी नजदीक से देख चुके हैं। हालांकि मत्स्य पालन के दिशा में थोड़ी बहुत पहल जो हुई है उससे यहां के लोगों को रोजगार जरुर मिला है।लेकिन इस जलाशय से जिन वैकल्पिक योजनाओं को विकसित किया जा सकता है उस दिशा में अभी तक कोई मजबूत पहल सरकार की तरफ से नहीं हो पाया है। विडंबना इस बात की है कि अरबों रुपए खर्च के बाद इस योजना का मूल उद्देश्य भी जमीन पर उतर नहीं पाई है। इसको लेकर सूबे के लोगों में घोर निराशा है।

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